Insaf
Insaf Preview

Insaf

  • इंसाफ
  • Price : 75.00
  • Diamond Books
  • Language - Hindi
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किस्मत ने बेचारी को कहां ला पटका था, पत्थरों के ढेर पर। एक हाथ में हथौड़ा था, दूसरे में पत्थर! पत्थर तोड़कर गिट्टी बना रही थी। पत्थर तोड़ने की मजदूरी करना उष्मा की विवशता थी, न तोड़ती तो खाती क्या? पेट भरने का अन्य कोई जरिया ही न था। घर से प्रातः आठ बजे आती, सारा दिन पत्थर तोड़ती। सायंकाल छह बजे के बाद घर जाती। आज भी सवेरे से ही पत्थर तोड़ रही थी। अब तो दोपहर के साढ़े बारह-पौने एक बज रहा था। जेठ की चिलचिलाती धूप में पत्थर तोड़ती, तो कभी दम भरने लगती। वसुंधरा भी आग की लपटें उगल रही थी। इस कड़ी धूप में मानो समूचा मानव सूख जाए। ऐसे में आसमानी छत के नीचे पत्थर तोड़ना सबके वश का रोग नहीं था, लेकिन उष्मा की यह आदत अब पक गई थी। बीस-बाईस साला तरुण नारी थी, नवयौवन चढ़ती आयु, घर बसाने और खेलने-खाने के दिन थे पर उष्मा को दो घड़ी भी सुख नसीब न हुआ। धूप के भयंकर प्रहार से एक सुकोमलांगिनी का गौर वर्ण झुलसकर श्यामलता पकड़ता जा रहा था। इससे पूर्व वह गोरा बदन अपार हुस्न खजाना हुआ करती थी। आज धूप में सारा दिन काम करते-करते शाम हो चली थी। पसीना सिर से निकलना प्रारंभ होता, पगतल में जा पहुंचता। उष्मा के सुकोमल हाथ पत्थर तोड़ते-तोड़ते कठोर हो चले थे। मां-बाप ने लाड़-प्यार से नाम चुनकर उष्मा रखा था।